जिस नूर से हम को प्यार था ,
वोह शोख चंद तम्कीन था ,
सरेआम हम हुए बे -आबरू ,
यह जख्म भी नमकीन था ,
पर आज मेरी कब्र पे ,
उस शोख के दो आँशु गिरे ,
वोह घाव फ़िर तिल मिल उठे ,
कल को जख्म -ये -महीन था ,
बड़े बदनाम है हम हो गए तेरे नाम को किताब पे उतार कर , और तुम हो कि आज भी मुह फेर के बैठे हो ,
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ब्लॉग्गिंग में आपका स्वागत है...आपकी अधिकतर रचनायें पढ़ी...काफी अच्छी लगी, कुछ शेर तो बेहद खूबसूरत हैं, बड़े दिलकश मायनों के साथ. थोडा सा अनगढ़पन है, पर प्यारा लगा...उम्मीद है आप लिखने का सिलसिला जारी रखेंगे. वक़्त के साथ लेखनी और परिपक्व होती जाती है और कई अन्य आयाम भी नज़र आते हैं जिनपर कलम चलायी जाए. हाँ शुरुआत ऐसे ही होती है...मुहब्बत से. तो एक बेहतरीन शुरुआत के लिए बधाई...आगे का इंतज़ार रहेगा.
ReplyDeleteplease remove word verification, it makes comenting difficult.
Mast hai yar lage raho kaviraj
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