तेरी आशिक़ी में
उस दिन एक गुलाब जो भेजा था ...
बन्द लिफ़ाफ़े
में ही पर एक ख़्वाब जो भेजा था ...
तू सूंघ लेती जो
महक को ,तो जन्नत नसीब हो
जाती...
सवालों से उलझा
रहा उम्र भर ,
गिरे पैमानों में
तो एक जवाब जो भेजा था ...
ढहर जाती रूह ये
जो उस दिन ...
निगाहों से जुड़
के जो देख लेते ...
जाते जाते ही सही
पर आख़िरी पल ,
एक दफ़ा मुड़ के जो देख लेते....
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