Monday, February 7, 2011

एक नाम दे बैठा ...


मैं इश्क में तेरे कुछ इस कदर खो बैठा ...
कि सुबह शाम को एक नाम दे बैठा ...

नज़र तेरी मेरे खोखले मन में यूँ बैठी ...
सवालो के अश्क़ से जैसे एक ज़ाम दे बैठा...

कभी करीब आती थी तो कभी दूर जाती थी...
तेरी आवाज़ थी या कोई रेशमी अंगडाई थी...
मैं ख्यालो में उलझ सुबह को मेरी एक शाम दे बैठा..
एक नाम दे बैठा ...

अब आ गयी अंत की बेला तो है ये लग रहा ...
कि मिलम तेरा ना हो तो बस दीदार ही हो जाये..
तड़पती साँसों को दर्द भरा एक पैग़ाम दे बैठा ॥
एक नाम दे बैठा ...

2 comments:

  1. //नज़र तेरी मेरे खोखले मन में यूँ बैठी ...
    सवालो के अश्क़ से जैसे एक ज़ाम दे बैठा...//

    Gazab sirji.. kya khoob likha hai .. :)

    ReplyDelete

इन पन्नो पे

वो कहते हैं कि कैसे लिख लेते हो तुम बातें दिल की इन पन्नो पे.... मैं कह देता हूँ कि बस जी लेता हूं मैं बातें दिल की इन पन्...

Popular Posts