बड़े बदनाम है हम हो गए तेरे नाम को किताब पे उतार कर , और तुम हो कि आज भी मुह फेर के बैठे हो ,
Wednesday, June 15, 2011
मज़ा ही कुछ और था ...
आज लम्हे बीत गए है वोह कुछ पुराने से ...जो कभी हमारे सबसे हसीं पल हुआ करते थे...आज इतनी भीड़ है कि खुद को खुद से भी नहीं मिला पते है हम सभी...अकेले जब रहता हू तो बीते पल याद आते रहते है..तो कुछ पंक्तियाँ लिख दी है..उम्मीद है पसंद आएँगी ...
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...
लाखो कम लो आज इस अनजान सी दुनिया में ,पर पापा कि जेब से एक का सिक्का चुराने का मज़ा ही कुछ और था ...
वो छोटी को छेड़ना और कहना कि कितनी मोटी हो तुम ,
हर बात पे बन्दर जैसी कितना पागल सा रोती हो तुम ,
पर आज कितना ही सोले जी भर के ,छोटी के उठाने पे फिर से सो जाने का मज़ा ही कुछ और था ...
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...
वो रातो को माँ की लोरी , वो उनका प्यार से दूध का ग्लास लाना,
वो मेरा लाख मना करना ,फिर समझाना भुझालाना ,
पर आज अकेले में करवट बदलते है,वोह माँ के गोद में एक झपकी भी पाने का मज़ा ही कुछ और था..
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...
वो लेके किराये कि साइकिल और जाना सड़को पे बिन डरे ,
वो पचास पैसे का बर्फ गोला और एक रुपए के रसभरे ,
आज बिसलेरी की बोतले से ही दोस्ती है ,पर कल का वो टोटी में मुह लगाने का मज़ा ही कुछ और था...
कितनी भी बड़ी मिठाई की दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...
वो पापा का मेले में ले जाना , वो मेरा बैट बाल की जिद करना,
वो उनका मुझको डांटना ,और मेरा वही पे रूठ जाना ,
वो फिर रात में कहानी की किताब लाना,
वो सुनते सुनते मेरा वही सो जाना,
वो मुश्कुराहत ही कुछ और थी ,
वो चाहत भी कुछ और थी ,
जोश था ,उमंग थी ,
रंग था ,तरंग थी ,
न ही इतनी भीड़ थी ,न ही इतना शोर था ,
पीपल कि ठंडी छाँव थी ,आँगन में नचा मोर था ,
आज कितना भी याद कर लू मैं वो वक़्त तो है गुम गया ,
इस भीड़ में शैल खो गया ,इस वक़्त संग थम गया ,
आज अकेले बैठे कमरे में पिज्जा रखा हो सामने ,पर माँ के हाथ की रोटी को खाने में मज़ा ही कुछ और था ....
कितनी भी बड़ी मिठाई कि दुकान पे चले जाओ ,पर माँ से छुपा के खाने का मज़ा ही कुछ और था ...
'शशि' दिल से ......
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bahut achche...bahut hi masoom aur pyaara
ReplyDeleteshukriyaa sir ji..bas koshish ki thi kuchh lamho ko jodne ki...
ReplyDeletetouchin..... :)
ReplyDeleteबचपन की यादे अमूल्य धरोहर सी हैं ...अति सुन्दर
ReplyDeleteshukriyaa...s@urav ji....
ReplyDelete@ashutosh ji.....dhanyawaad ji....aur sahi kaha aapne...bachpan ki yaaden ek alag hi ehsaas hai..itni nirmam hoti hai hai :)
ReplyDeleteBahot hi sundarta se bhaavnaao ko vyakt kiya hain! :)
ReplyDeletethnxx prerna... :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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